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Saturday 8 October 2011

~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ माँ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~

माँ दिन -प्रतिदिन व्यस्त रहने लगी,
जिस दिन अधिक व्यस्त होती थी माँ,
चढ़ जाता था मुझे बुखार,
ताकि वह सारे काम छोड़ कर,
दोड़ी आए मेरे पास,
सहलाते रहे मेरा सिर,
और करती रहे मुझे प्यार,
में नित नए बहाने करती,
और मेरी माँ नित नए नुस्खें,
अलग - अलग तरीकों से उतारती नज़र,
कभी तेल व बाती लिए,
तो कभी नमक व राई लिए आती,
किसी ओझा के भुत भगाओ मन्त्रों की तरह,
न जाने क्या - क्या बुदबुदाती,
मेरी एक चिक पर,
तैतीस करोड़ देवी - देवता याद आते थे उसे,
और मुझे उसकी गोद में सारा ब्रम्हांड,
प्रार्थनाओं का अर्थ नहीं समझाती थी वह,
पर अपनी निषछल भावनाओं से,
मेरी हर नादान ख्वाहिश की,
पूरा करने का सामर्थ रखती थी,
इस तरह मेरा झूठा बीमार होना तक,
गौरवान्वित करता था मुझे,
अब जबकि में जानती हूँ,
की मेरे बहानों को भी सच समझकर,
आसमां धरती पे उठा लेने वाली माँ अब नहीं है,
फिर भी उन आदतों की आदत से परेशान हूँ में,
आज उन हाथों की छूअन को ढूंढ़ती हूँ,
जो सारे कामों को छोड़कर मेरा सिर सहलाती थी,
और वो नज़र,झड - फूंक,प्रार्थनाएं,
जो केवल अपनी आस्था व प्यार के कारण असर दिखाती थी,
बेशक वो सब आज नहीं है,
पर उसकी दुआओं का असर,
मेरी साँसों में ज़िन्दगी बनकर धारक रहा है,
माँ का याद पल - पल सता रहा है.

~ ~ सदा बहार ~ ~ 

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